रविवार, 29 नवंबर 2020

कविता - महामारी और मानसिक स्वास्थ्य

Name - Saundraya Dwivedi
Course - BA Hindi Hons
Year - second year
College- Jesus and Mary College


ll महामारी और मानसिक स्वास्थ्य ll

ये रास्तों के सन्नाटे 
ये घरो से आती आहटे
कुछ जगहों की पुरानी यादें  
खिड़कियों से झांकती 
कुछ चंचल आंखे
ये बहती हुई पवन
मेरे कानो में आकर कहती है 
ये वक्त भी गुजर जाएगा
ये वक्त भी गुजर जाएगा

लगाया मैने बैर पवन से
पसंद ना आये मुझको बात
भरे भवन में देती है एक झूठी सी आस
फिर भी जाने क्यों जागी है उर में एक आस
पवन कहती है मेरे मन से छोड़ो तुम घबराहट का साथ

कैसे सुनूं मैं बात पवन की ,
मैं महामारी से आहात
पर सुननी जरूरी है आज पवन की ये बात
मन मेरा विचलित रहता है।
बदला है अब मानसिक स्वास्थ्य
तरह - तरह के प्रयोग करूं मैं
पर कैसे जगाऊं आस

©सौन्दर्या द्विवेदी

बुधवार, 25 नवंबर 2020

कविता - पुस्तकें

Name - Saundraya Dwivedi
Course - BA Hindi hons
Year - second year
College - Jesus and Mary College

पुस्तकें 📚

पुस्तकों में होता है 
प्रेम , आशा ,रोमांच और अनुभव
नहीं होता इनमें
द्वेष, ग्लानि और ईर्ष्या 
पुस्तकें मित्र बनाने योग्य है।
पुस्तकें बदल सकती है समाज को 
पुस्तकें रोक सकती है बड़े से बड़े युद्ध को
पुस्तकों में होता है अपनापन
पुस्तकें रखती है किसी के जीवन का अनुभव
एक रोमांचकारी यात्रा व
प्रेमी प्रेमकाओ के प्रेम को
पुस्तकें तोड़ देती है उन जंजीरों को
जो पितृसत्तात्मक समाज की विचारधारा से जन्म लेती है।
महज कुछ पन्नों और स्याही से बने अक्षरो का एकीकरण
हिम्मत रखता है समाज को सुधारने की।
मानव के ज्ञान का सबसे सुंदर निर्माण जो ले जाए समाज को सृजन की ओर वह पुस्तक ही है।

©सौंदर्या 🍁

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

कविता - चाय

Name - Saundraya Dwivedi

Year - second year

Course - BA Hindi hons

College - Jesus and Mary College



      चाय ☕


अगर एक चाय मिल जाए


दिल फिर खिल जाए 

बात पुरानी याद आए

वो डायरी के किस्से ,

आंखों के सामने आए

कसम से वो अदरक वाली चाय ,

बड़ी याद आए

उस चाय की गर्माहट ,

और सुबह के कोहरे की आहट

और तुम, आज फिर से बड़े याद आए

हाय ये चाय तो चहरे पर मुस्कुराट लाए

उस सर्दी के हौसले बुलंद हो 

उससे पहले हम चाय पी कर नरम हो जाय

चलो एक चाय हो जाय

चलो एक चाय हो जाए


©सौंदर्या द्विवेदी

रविवार, 15 नवंबर 2020

कविता - कोरोना की दिवाली

Name : Akanksha Dagar
Institution : Ex- DIET Delhi


कविता का नाम- कोरोना की दिवाली...
वह भी क्या दिन थे जब हम अपनों संग थे...
हर त्यौहार सब साथ मिलकर मनाते थे,
दिवाली का होता सबको ऐसा हर्ष उल्लास...
बिछड़े बंधुओं को भी ले आता था पास,
बच्चे-बूढ़े मिलकर घी के दिए जलाते...
एक दूजे को आपस में मिठाइयां खिलाते,
भाग-भाग कर सबको अपने गले लगाया...
आपस में दूरी लाया..जबसे ये कोरोना है आया,
मिठाई बांटे तो अब खाता नहीं यहां कोई...
कोरोना ने हर एक के हृदय में शंका संजोई,
गली मोहल्ले में पटाखे जलाते...
बच्चे हर घर में आतंक फैलाते,
अब ना कहीं शराबा ना ही कोई शोर...
छाया सिर्फ सन्नाटा हर एक ओर,
ना जाने कब आएंगे वे दिन उजियारे...
जब मिलेंगे एक दूसरे से हम सारे।

कविता - बदलता युवा

Name : Akanksha Dagar
institution : Ex- DIET Delhi


कविता का नाम- बदलता युवा...
ना जाने क्या हो गया है?
रखते हैं आस बड़े बुजुर्ग जिनसे आज वही युवा बदल गया है,
जो देता था वक़्त कभी दादा-दादी,नाना-नानी को..
देखो आज वो किसी और दुनिया में खो गया है,
ना पढ़ाई की चिंता, ना समझ ही दुनियादारी की..
ना सम्मान बड़ों का..ना ख़बर बढ़ती बेरोज़गारी की,
बेधड़क-बेखौफ बाइक,स्कूटर,कार दौड़ाते हैं..
दोस्तों को रिझाने के लिए Speed की Vdo भी बनाते हैं,
दुःखी मत हो!आगे लड़कियों की भी बारी है..
सड़कों पर Earphones लगाकर चलना इनका आज भी जारी है,
Late हो रहे हैं,कहकर घर से स्कूल, कॉलेज के लिए निकलते हैं..
थोड़ी दूरी पर वही ठेले पर गपा-गप Momos खाते मिलते हैं,
मम्मी को बड़ी चिंता,बिटिया को लग गई जाने कौन-सी बीमारी..
हर सप्ताह-महीने घट जाता इसका वज़न बारी-बारी,
पापा बड़े खुश बेटा मेरा कितना लायक, स्कूल से सीधे ट्यूशन जाता है..
तेरा लाड़ला एक लड़की को तेरी बहू बता रहा..यह पड़ोसी आकर बताता है,
मज़बूरी कहो या परवाह बात अपनी दादी की हो…
तो बस में दूसरों से Seat दिलाते हैं,
रास्ता 5 मिनट का ही क्यों ना बचा हो...
बुज़ुर्ग खड़ा कांपेगा..फिर भी Seat से नहीं हिलते हैं,
दादी की कहानियां तैयार हैं, मगर सुनने वाले कान बन्द हो गए..
New Generation, New Time कहकर ना जाने वो युवा कहां गए,
क्या करूं ये जनता थक जाती है, लिखना और भी चाहती हूं..
माफ़ करना थोड़ा ज्यादा बोल दिया, आखिर मैं भी इसी में आती हूं।

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

कविता - दास्तां - ए - इंसान

Name:- Aadrika Siddhi 

Course :- BA Programme (Psychology and Philosophy) 

Year:- 2020-2023

College:- Jesus and Mary College

दास्तां-ए-इंसान


कभी कभी मन में एक ख्याल सा आता है,
समझ नहीं आता कि इस सवाल का जवाब खोजना चाहिए, 
या बस बैठे गुमसुम सब कुछ होते तंकना चाहिए।
इस झूठ-फ़रेब की दुनिया में क्या सच, क्या झूठ किसे क्या पता हे?
सबको इस भीढ़ में अपनी एक पहचान बनानी है, अपने ख्वाब सजाने हैं।
पर अंदर उस एक वजुद का क्या 
जो शायद कहीं पड़ा हुआ है?
हर दिन जिसका दम घुट रहा है।
ये दुनिया, जहाँ चाँदी सोना ही सब कुछ है,
किसने कितना कमाया ही तुम्हारी शक्सियत है,
यहां इंसानियत का नाम-ओ-निशान नहीं है।
डर है हर उस शक्श की आँखों में, 
जो अपने अंदर के इंसान को दबा रहा है, 
और इस शोर में एक जानवर जैसे जन्म ले रहा है।
इस जानवर को तुम सुला कैसे लेते हो ?
जो तुम हो नहीं उससे तुम जगा कैसे देते हो?
वो हर एक इंसान जो ये न कर सके 
उसे ये दुनिया कुचल देती है,
इसलिए हर एक इंसान अपने ज़मीर को खुद ही दबा लेता है।
कि इस दुनिया में उसे कुछ कम ही सही 
पर राहत की साँसें मिलें।
अंदर अपना सिरे पकड़ सोचे,
और बाहर उसी सिर को ऊंचा कर ज़माने में बेख़ौफ़ चले।

- आद्रिका सिद्धि
    




    

बुधवार, 11 नवंबर 2020

कविता - प्रकृति

Name : Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


प्रकृति                                                                   
वह जमाना गया
जब प्रकृति को सब कुछ मानते थे।
अपने दुःखों और सुखों का कारण 
प्रकृति को मानते थे
मानते भी क्यों न
आखिर वही करती है इंसान का
हर तरह से पोषण
और आज इंसान ही कर रहा है
हर प्रकार से प्रकृति का शोषण 
नहीं परवाह उसे प्रकृति की ,भूमि की 
है परवाह उसे केवल 
अपने बैंक को भरने की 
मगर शायद वह भूल गया 
कितना कर्ज है हम पर प्रकृति का
जब नहीं थी हमें समझ 
तब इसी ने हाथ थामा था
व्रक्षों की लताओं में छिपा
सर्दी से हमें  बचाता था 
फल फूल का दान कर 
पेट की आग बुझाता था
बचाया जिसने हमें 
धूप से ,बारिश से
आज उसी के हम दुश्मन हो गए
वैज्ञानिकों के परीक्षण सफल क्या  हो गए
इंसान ही प्रकृति के दुश्मन हो गए
मदद की जिसने इन्सान के विकास में
वही अपनी सुरक्षा में  असमर्थ हो गई

सोमवार, 9 नवंबर 2020

कविता - दीपावली


NAME- MS SARASWATI DUBEY
COURSE- HINDI (HON) III YEAR
INSTITUTION- KIRORIMAL COLLEGE (DELHI UNIVERSITY)

कविता - हिंदी है परिवार


प्रदुन कुमार ठाकुर
B.A(hons) hindi 
3rd year
आर्यभट्ट कॉलेज

हिंदी है परिवार

कोई कहावे सिद्ध पुरूष ,कोई सियासतदार।
अंग्रेजी मेहमान है, हिंदी है परिवार।

कल सत्ता किसी और कि, कल शासक कोई और
हिंदी ऐसी बाँसुरी, जिन सुन नाचे मोर।

अंग्रेजी सर आँख पर , हिंदी के बहते नोर।
हिंदी सुनते कुछ यूँ देखे, जैसे की सामने चोर।।

अपनी बोली बोले में , लागे काहू को लाज।
कौनो अपनी बोली के, माने सर का ताज।।

भाषा ऐसी धार है, अमृत रूपी भेट।
संस्कृति और सभ्यता का, लहलहाता खेत।।

अंग्रेजी जो कुछ कह दे, कहलावे पढ़ा लिखा।
पर आसमान में उड़ने का, सपना हिंदी में दिखा।।

कविता - सुबह का इंतज़ार


Name - Saundraya Dwivedi
Course - BA Hindi hons
Year - second year
College - Jesus and Mary College



सुबह का इंतजार 🌼

एक कविता को पूरा किया जाए
या भरा जाए उस सूखे पन्ने को जो बेरंग सी सफेदी लिए हुए है
कोई धुन नई बनाई जाए 
या सुना जाए वो संगीत जो राहत दे रूह को
तेरे बारे में सोचा जाए
या उन यादों के बारे में
जो अब धुंधली सी लगती है
अपनी तमन्नाओं को पूरा किया जाए 
या महसूस किया जाए रूह के खालीपन को
खामोश रहा जाए 
या खुद से बाते हजार की जाए
पुरानी गलतियों से हताश हुआ जाए
या सीखा जाए उनसे कुछ भविष्य की ओर
तानो को दिल से लगाया जाए 
या आगे बड़ा जाए उन लोगो को बेचारा समझकर
जो मिला नहीं उस पर रोया जाए
या जो है उसमे खुश रहा जाए
मोहब्बत के लिए मिट्टी हुआ जाए
या मिट्टी से मोहब्बत की जाए
गुजरे लम्हों के बारे में सोचा जाए
या जिया जाए आज में ही
इन तमाम सवालों के जवाबों को ढूंढा जाए
या सो जाया जाए गहरी नींद में 
और किया जाए उस सुबह का इंतजार
जो देती है सिर्फ खुशियों भरी रोशनी

©सौंदर्या द्विवेदी

कविता - तुम


Name - Saundraya Dwivedi

Course - BA Hindi hons

Year - second year



तुम


अफसाना भी तुम हो 

ख्वाइश भी तुम हो 

दिन भी तुम हो 

रात भी तुम हो



जहां होती है मोहब्बत में नोक झोक 

वहा की वकालत भी तुम हो

तुम ही पानी हो 

तुम ही अम्बर हो 

जिससे आती है दुनिया में खुशियां 

वो तुम ही हो


 

तुम्हे पता है कि तुम्हारे जैसे लोग बहुत कम है

तुम जिंदगी जीने की वजह हो

तुम बाकियो से बहुत अलग हो 

या यूं कहूं मेरे लिए बहुत खास हो



तुम संगीत में हो

तुम राग में हो

तुम ध्वनि में हो

तुम्हारा अपना अस्तित्व है



तुम इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह हो

तुम्हारे बिना जिंदगी बेरंग है

तुम आकृति में हो

तुम प्रकृति में हो 


तुम चेतना में हो 

तुम स्वप्न में हो

तुम्ही राग हो 

तुम ही विलाप हो


सुनो तुम मेरे लिए बेहद खास हो 

हां तुम ही


©सौंदर्या द्विवेदी


रविवार, 8 नवंबर 2020

कविता - भूल

Name : Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


भूल

देखा था जो स्वप्न 
वह स्वप्न स्वप्न ही रह गया 
मिलते मिलते नयनों से ही 
वह कहीं ओझल हो गया।
था कठोर निर्णय मेरा
मुझे पढ़ना है, कुछ बनना है
औंचक किसी के आ जाने से 
मेरा निर्णय बदल गया।
थी किसी की नजर मुझ पर
वह मीठे बोल सुनाता था 
हँस हँस कर इतना वह मुझ पर 
अपना हक जताता था।
जानती थी खूब
वह निकम्मा है, आवारा है
पर खुद को समझाती 
नहीं अब शायद उसने खुद को सुधारा है।
उसके कारण मैंने अपनी
तमन्नाओं का कत्ल किया
अपनी इच्छा और अभिलाषा 
का भी तो मैंने कत्ल किया।
परन्तु यह भूल थी मेरी 
जो उस पर विश्वास किया
उसकी बेवफाई ने 
मुझ पर बड़ा आघात किया।
कर भरोसा उस पर मैंने
अपनों का तिरस्कार किया
और शायद इसी का परिणाम 
मुझे प्राप्त हुआ।
उसके कारण ही तो सारे 
अपने मुझसे रूठ गए
उसके कारण ही तो सारे 
सपने मेरे टूट गए।

कविता - स्त्री

Name : Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


स्त्री
स्त्री हूँ मैं
तो यह मत समझना
कमजोर हूँ मैं
कमजोर नहीं हूँ मैं
हूँ मैं एक बुलंद आवाज
जो कर सकती है
वह सब कुछ 
जो पुरुषों से चाहता है समाज
स्त्री हूँ मैं
तो यह मत समझना
नित्य रहूँगी तुम्हें समर्पित
'ओ' पुरुष प्रधान समाज

कविता - जवाब

Name : Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college

जवाब

लड़की हूँ मैं
तो यह मत समझना 
भावनाओं में बह जाऊंगी
तुम फँसाओगे मुझे
और मैं फंस जाऊँगी
प्रेम प्रेम है
है यह एहसास 
और तुमने  इसे
बना लिया है व्यापार
सोचा था 
कभी तो हरकतों से बाज आओगे
नहीं सोचा था
तुम्हारी हरकतों से 
मुझे भी लाज आ जाएगी
कभी मौना कभी सोना
कभी वगैरह वगैरह
क्या मिलता है तुम्हें 
इतना करके बखेड़ा
कोसेंगे लोग लड़की को
कहकर दोष इसी का होगा 
और तुम किनारा कर जाओगे
लड़के हो न 
माफ कर दिए जाओगे
बात नहीं पहुंचने दी जाएगी
कचहरी तक 
दबा ली जाएगी
और लड़की,
शायद वह आत्महत्या कर जाएगी
मन करता है ,,😠😡
ऐसा सबक सिखाऊं तुम्हे
कि दोबारा किसी लड़की को 
आंख उठाकर देखने की हिम्मत 
जुटा नहीं पाओगे
मगर क्या करें जनाब
यह लोग हैं न 
बात पचा नहीं पाएंगे
जो कहना था सो कह दिया 
अब आगे नहीं कहूँगी
क्योंकि यदि कहूँगी
तो तुम सच का बोझ उठा नहीं पाओगे

कविता - बात अस्मिता की

Name - Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


बात अस्मिता की                                     
कहते हैं लोग 
वे दो एक हैं।
पर मैं कहती हूँ 
दोनों अलग हैं।
एक स्त्री और एक पुरुष
दोनों के काम अलग ,
नाम अलग,
विचारधाराएं अलग,
स्वभाव अलग,
समाज में स्थान अलग,
फिर कैसे वे एक हैं?
आखिर क्यों?
स्त्री की पहचान हो उसके अधीन,
जिसका अस्तित्व ही हो  उसके अधीन।
आखिर क्यों ?
समयानुसार बदल जाते हैं शोषक
शोषित वही 
जिसके मार्ग में हैं 
सदियों से अवरोधक।
आखिर मैंने सोचा
किस नींव पर खड़ा है यह समाज?
तब मैंने पाया
झूठ और षडयंत्र की नींव 
पर खड़ा है यह समाज।
जो सदियों पूर्व रचा गया 
स्त्रियों के लिए,
जहाँ आधी आबादी को दी गई
स्वतंत्रता बेशुमार,
जहाँ आधी आबादी  की
अस्मिता को ही दिया गया नकार 
अब तक उसे थी 
पुरुषों से ही स्वतंत्रता की आस
परंतु हुआ नहीं कुछ बदलाव खास 
सदियाँ बीत गईं
और सदियाँ बीत जाएँगी
यदि यही चलता रहा लगातार
इसीलिए,अब वह 
स्वयं कर रही है प्रयास 
कह कर 
कभी तो होंगी  कामयाब !

कविता - कितना अच्छा होता ना

Name - Saundraya Dwivedi
Course- BA Hindi hons
Year - second year
College - Jesus and Mary College


कितना अच्छा होता है ना
कभी-कभी कुछ ना होना
कितना अच्छा होता है ना
बारिश की बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस करना
कितना अच्छा होता है ना
रात को खुले आसमान के नीचे लेटकर तारों को निहारना
कितना अच्छा होता है ना
कभी-कभी कुछ ना करना
कितना अच्छा होता है ना
शाम को वो कुल्हड़ वाली चाय पीना
कितना अच्छा होता है ना
बेवजह मुस्कुराना
कितना अच्छा होता है ना
कभी-कभी कुछ ना होना

कविता - बंदिशे

Name : Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


बंदिशे

हजार बार कह चुके हैं 
हम उनसे
नहीं छोड़ सकती मैं
मम्मी और पापा को 
उनकी मर्जी के बगैर
फिर क्यों आता है वो
बार बार लेने मेरी खैर
उसने तुरंत कहा
नहीं छोड़ सकती तुम
मम्मी और पापा को
उनकी मर्जी के बगैर
लेकिन वो छोड़ सकते हैं तुम्हें
तुम्हारी मर्जी के बगैर
कहीं भी कभी भी
जहाँ सभी होंगे तुम्हारे लिए गैर
जो रखेंगे तुमसे बैर
किसी को परवाह नहीं होगी
कि तुमने क्या खाया और पिया
सबको परवाह होगी तुमने क्या दिया
इसीलिए मैं आता हूँ बार बार तेरी गैल
लेने तेरी खैर
अपने साथ हुए बरताव पर
ज़रा करो तुम गौर
तुम्हें मेरी कौल
मैने उजागर की स्मृतियाँ बतौर
शिक्षा लेने नहीं दी 
समझ कर गैर
लाड़ प्यार दिया नहीं 
समझ कर गैर
मौलिक अधिकार छीन लिए गए
समझ कर गैर
मेरी इच्छाओं को कुचला गया 
समझ कर गैर
अपनी इच्छाओं को थोपा गया 
समझ कर गैर
और अब जब मैं करती हू
उन बातों पर गौर
तो आता है मुझे खौर
नहीं सह सकती 
यह बंदिशों की डोर
चाहती हूँ हमेशा हमेशा के लिए 
इसे देना तोड़

शनिवार, 7 नवंबर 2020

विषय : लक्ष्य निर्धारण

नाम --- अविरल अभिलाष
कक्षा –हिन्दी प्रतिष्ठा (तृतीय वर्ष) पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य)

विषय : लक्ष्य निर्धारण

वर्तमान के सजग एवं सार्थक प्रयासों के प्रतिफल पर भविष्य का सुंदर महल बनता है,जिसमें भूत की संचित धरोहर का अपना योगदान होता है क्योंकि भूत पर हमारा कोई नियंत्रण नही रह जाता। अतः वर्तमान को संवारने का प्रयास ही हमारे अधिकार में होता है जिससे सुन्दर व सफल भविष्य को प्राप्त किया जा सकता है। पर यह भी सत्य है कि भविष्य यद्यपि भविष्य होता है जो अनिश्चितता की गोद में फलता-फूलता है फिर भी यह मानना होगा कि सजग प्रयासों व कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। इसके बल पर अनेक कर्मवीरों ने असंभव को संभव बना दिया है जिसके विषय में अभिमान व्यक्त करते हुए कब हृदय गया उठता है कि-


"पर्वतो को काट कर सड़के बना देते है वो

सैकड़ो मरभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वो"


इस प्रकार सुनहरे भविष्य के लिए अपनी तैयारी की रुपरेखा में निम्नबिन्दु हमारी मदद करते हैं_

हमारा इष्ट होता है कि भविष्य में हम सफल व्यक्ति हो,समाज व देश के लिए उपयोगी हो,तथा मानव जीवन के सार्थक परिणित को भी प्राप्त करने में सफल हो । सफलता के लिए भारतीय मनीषा का यह उदघोष हमारे पथ पर स्पष्ट प्रकाश फैला देता है-


""उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रं   क्रियाविधिज्ञं  व्यसनेश्वसक्तम्  |

शूरंकृतज्ञं दृढ सौहृदं च स्व: लक्ष्मी  स्वयं याति निवासहेतोः गत:।।""


उक्त पंक्तियों में भरी ऊर्जा व सफलता के सजग अनुक्रम इसके अर्थ को सोचकर मन को प्रफुल्लित कर देते हैं।

सफलता के लिए उत्साह से संपन्न होना पहली शर्त है। इसके अगले क्रम में अदीर्घ सूत्रम् अर्थात आलसी ना होना दूसरी आवश्यकता है इसके आगे आगे क्रियाविधिज्ञं अर्थात क्रिया विधि को जानना अगली आवश्यकता है। इन सब के बावजूद यदि व्यसन में आसक्त रहने की आदत है तो सफलता असंभव हो जाती है, इसलिए पंक्ति का उद्घोष चौथी महत्वपूर्ण शर्त में व्यसन से बचने की सलाह देता है।आगे शूरं  कृतज्ञं अर्थात नायक की भांति किसी भी कार्य में प्रथम आने की लालसा एवं कार्य सामर्थ्य रखता हो तथा अंतिम योग छठी आवश्यकता के लिए रचनाकार अपने उद्देश्यों पर दृढ़ रहने की सलाह देता है।

वास्तव में, सारे गुणों से संपन्न होने के बाद भी यदि अपने लक्ष्य को लेकर दृढ़ नहीं बल्कि भ्रमित हैं तो सफलता अपने अंतिम सोपान के करीब पहुंच कर भी संदिग्ध हो जाती है इसके लिए हमें निम्न पंक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा ग्रहण करनी चाहिए--


""जब नाव जल में छोड़ दी, तूफान में ही मोड़ दी। 

दे दी चुनौती सिंधु को, तो धार क्या मझधार क्या।।


"इन पंक्तियों के हृदय में गुनगुनाने वाली ऊर्जा हमारे लक्ष्य प्राप्ति के इरादों को दृढ़ कर देती है और बड़े लक्ष्य के लिए कठिनाई से ना घबराने की गजब की ऊर्जा प्रदान करती है।

वास्तव में, एक कर्मवीर इन सभी गुणों से संपन्न होता है, तो सफलता स्वयं ही उसको वरमाला लिए स्वागत के लिए आतुर हो जाती है।

इसी निश्चय का संदेश गीता में श्री कृष्ण 

""कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"" 

के द्वारा तथा राम की शक्ति पूजा में हिंदी साहित्य के महान हस्ताक्षर कवि निराला जी 

"आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर.....

""वरो विजय""  के द्वारा भी व्यंजित करते हैं।

इसलिए हमें अपने सुंदर एवं सफल भविष्य के लिए कर्म वीरों के इन्हीं गुणों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए इस क्रम में सद्गुणों को ग्रहण करना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है दुर्गुणों से दूर रहना।

कर्म पथ पर मजबूत इरादे से बढ़ाया गया हर कदम हमारे हौसले को बढ़ाता है इस हौसले से उपजने वाली ऊर्जा कठिनाइयों से लड़ने के लिए अपारशक्ति भेंट करती है।

फिर मन में यही गूंज उठने लगती है कि---


""कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो 

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ ना हो 

कुछ तो उपयुक्त करो तन का, नर हो न निराश करो मन को।।""


इन सजग एवं सार्थक उपादान उसे हमें सफलता अवश्य मिलेगी यह निश्चित है किंतु मेरा मानना है कि इसके आगे प्रयासों की सजग संयोजना कम नहीं होती। सफल होकर हम केवल अपने लिए उपयोगी ना रह जाएं, बल्कि देश एवं समाज के लिए मेरा योगदान एक अमूल्य धरोहर हो। इसके लिए नैतिक गुणों से संपन्न होना तथा राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होना परम आवश्यक है। इस संदर्भ में महापुरुषों के प्रेरक कथन उनके अनुभव व सजग संकेत हमारा मार्गदर्शन करते हैं---


""जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं। 

वो हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।""


वास्तव में, एक सफल एवं समाजोपयोगी व्यक्ति बनने के लिए इन पंक्तियों की गूंज हमें नैतिक मूल्यों यथा सच्चाई, ईमानदारी व राष्ट्रभक्ति की अपार संवेदना भेंट करती है। मेरा स्पष्ट मानना है कि इन मूल्यों से हीन व्यक्ति सफलता के चाहे जितने ऊंचे शिखर पर क्यों ना पहुंच जाए समाज व देश के लिए उसका योगदान मूल्यवान हो ही नहीं सकता। इस प्रकार, हमें अपने सुंदर एवं सफल भविष्य के लिए सफलता के सूत्र ढूंढने के साथ- साथ नैतिकता के महान गुणों को भी धारण करते रहना चाहिए तभी सही मायने में हम सुंदर व सुखमय भविष्य की आकांक्षा कर सकते हैं। ईमानदारी, निष्ठा व पवित्र साधनों के सहारे किया गया प्रयास तथा सृष्टा को समर्पित उसका प्रतिफल एक कर्मवीर को लक्ष्य प्राप्त करने की अकाट्य शक्ति प्रदान करता है। जिससे वह अपने मानवीय कर्तव्यों का सही मायने में पालन कर सकता है।

इस प्रकार कहना ना होगा कि इसके लिए हमें नियमित रूप से इस सुझाव पर आगे बढ़ना ही होगा कि-

 

""शक्ति के विद्युतकण जो व्यस्त विकल बिखरे हैं हो निरूपाय।

समन्वय उनका करो समस्त विजयिनी मानवता हो जाए।।“”




कविता - मैं लिखती हूं

Name - Saundraya Dwivedi
Course- BA Hindi hons
Year - second year
College - Jesus and Mary college


मैं लिखती हूं

कुछ किस्सों को कुछ कहानियों को
कुछ कविताओं को,
और पिरो देती हूं इनमें
कुछ बातों को,
कुछ भावों को,
कुछ खाव्बों को,
मै लिखती हूं
कभी ना किये गए वादों को,
भुलाई ना जा सकने वाली यादों को
मै लिखती हूं
सुबह को, शाम को,
कुछ शब्दों को,
कुछ वर्णों को,
और बांध देती हूं इन्हे कल्पनाओं की डोरी से
"मैं" लिखती हूं

©सौंदर्या द्विवेदी

कविता - आईना

Name - Saundraya Dwivedi
Year -   2nd year
Course- Hindi (hons)
College - Jesus and Mary college
                     
आईना

वो शर्मीली सी लड़की आईने से कई बाते करती है
कभी हसती है कभी रोती है
कभी रूठ जाती है
वो देखती है आईने में अपने आप को
और ढूंढती है अपने अस्तित्व को 
ये आईना उसे अपना सा लगता है
पर फिर भी वो सिर्फ उसे उसका अक्श ही दिखाता है

वो शर्मिली सी लड़की आईने में अपने आप को ढूंढती रहती है 
उसे एक मासूम सा बचपन नजर आता है
वो बचपन बड़े ही ख्वाब सजाता है
सपने देखता है, उम्मीदें करता है

पर अचानक ही कोई उस आईने को लेने आ जाता है
अब आईने में कुछ और ही नजर आता है
अक्श अब धुंधला सा पड़ गया है
अस्तित्व कुछ कदम पीछे दिखाई देता है
अब आईना ख्वाब नहीं मेहंदी सजाता है

आईने से बातो का सिलसिला अब बंद हो गया है
गहनों की चमक से अब उसका जी घबराता है
आईने में कई शिकन पड़ गई है
घूंघट की ओट में जिन्हें ढका जाता है


~सौंन्दर्या 




गुरुवार, 5 नवंबर 2020

आईना - ए - तहरीर

                       ✍️आईना-ए-तहरीर✍️


"शब्दों के साथ खेलने में बहुत मज़ा है, बस शब्दों को ठीक से सजाना सीख लो।"

अपनी सृजनात्मकता को, जो कहीं दबी-छुपी है उन्हें खोजकर जीवंत करने के लिए यह एक सशक्त मंच है।

आज के समय से जुड़े कई मुद्दों व विषयों पर विमर्श करना व उसे सभी के समक्ष प्रस्तुत करना ज़रूरी होता है क्योंकि कहीं न कहीं इससे समाज और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं, यह मंच इन्हीं पक्षों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए बनाया गया है। अब तक अनछुए, अनबूझे बिंदुओं के उद्घाटन के लिए "आईना-ए-तहरीर" आपका स्वागत करता है।

यह जीसस एंड मेरी कॉलेज की कॉल्ड्रन मैगज़ीन सोसाइटी (हिंदी खण्ड) द्वारा बनाया गया एक अंतर्विषयक मंच है, जिसपर आधुनिक परिवेश के सभी रंगों को सजाया - संवारा जा सकता है। इसके द्वारा साहित्य, संगीत, विज्ञान, मनोविज्ञान, भूगोल, इतिहास, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों पर आधारित रचनाओं को दुनिया तक पहुंचाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।

यह मंच आपकी लेखकीय सृजनात्मक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का स्वागत करता है। इच्छुक रचनाकारों की रचनाएं इस मंच पर प्रकाशन हेतु आमंत्रित हैं। विविध शिक्षण संस्थानों से जुड़े विद्यार्थियों और शोधार्थियों की रचनाओं का यहां स्वागत है।

हम रचनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में कहानी, कविता, निबंध, नाटक, विचार, लघु कथा, शोध अध्ययन, यात्रा वृत्तांत, टिप्पणी आदि को आमंत्रित करते हैं। 


~संपादकीय निर्देश~


  1. ब्लॉग विविध विचारों की अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और रचनाकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है।

  2.  प्रविष्टियां केवल हिंदी में ही लिखी होनी चाहिए

  3.  लेख की शब्द सीमा 500-1000 शब्दों से अधिक नहीं होनी चाहिए।

  4.  रचनाकारों को अपनी रचनाओं के साथ अपना संक्षिप्त परिचय देना अनिवार्य है जिसमें उनका नाम, उनके कॉलेज अथवा शिक्षण संस्थान का नाम तथा ईमेल आई-डी होनी चाहिए।

  5.  आप अपनी रचनाओं को इस जीमेल  आई-डी पर प्रेषित कर सकते हैं :- cauldronhindimagazine@gmail.com

  6. ब्लॉग पर प्रकाशन संपादकीय टीम के निर्णय के अधीन व मान्य होगा।

  7. रचनाकार अपने विचारों के प्रकाशन के लिए स्वयं ज़िम्मेदार होगा।


~ब्लॉग संपादकीय समिति~


• मुख्य संयोजक

डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव - स्टाफ एडवाइज़र

डॉ. बीरेंद्र सिंह - स्टाफ एडवाइज़र


•ब्लॉग प्रबंधक

वेणु -  अध्यक्ष (कॉल्ड्रन हिंदी खण्ड)   

बी.ए. हिंदी ऑनर्स ( तृतीय वर्ष) 

अदिति - उपाध्यक्ष (कॉल्ड्रन हिंदी खण्ड) 

बी.ए. हिंदी ऑनर्स (द्वितीय वर्ष)


•संपादकीय समिति सदस्य

समीक्षा - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (तृतीय वर्ष)

रीना शुक्ला - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (तृतीय वर्ष)

बरखा यादव - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (तृतीय वर्ष)

दीपा कुमारी - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (द्वितीय वर्ष)

तेजस्वी कुमारी - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (द्वितीय वर्ष)

सौंदर्या द्विवेदी - बी.ए. हिंदी ऑनर्स (द्वितीय वर्ष)








आज पेड़ों की खुशी

आज पेड़ों की खुशी निराली है हर तरफ दिख रही हरियाली है पक्षियों में छाई खुशहाली है क्योंकि बारिश लाई खुशियों की प्याली है  Priya kaushik Hind...