शनिवार, 7 नवंबर 2020

कविता - आईना

Name - Saundraya Dwivedi
Year -   2nd year
Course- Hindi (hons)
College - Jesus and Mary college
                     
आईना

वो शर्मीली सी लड़की आईने से कई बाते करती है
कभी हसती है कभी रोती है
कभी रूठ जाती है
वो देखती है आईने में अपने आप को
और ढूंढती है अपने अस्तित्व को 
ये आईना उसे अपना सा लगता है
पर फिर भी वो सिर्फ उसे उसका अक्श ही दिखाता है

वो शर्मिली सी लड़की आईने में अपने आप को ढूंढती रहती है 
उसे एक मासूम सा बचपन नजर आता है
वो बचपन बड़े ही ख्वाब सजाता है
सपने देखता है, उम्मीदें करता है

पर अचानक ही कोई उस आईने को लेने आ जाता है
अब आईने में कुछ और ही नजर आता है
अक्श अब धुंधला सा पड़ गया है
अस्तित्व कुछ कदम पीछे दिखाई देता है
अब आईना ख्वाब नहीं मेहंदी सजाता है

आईने से बातो का सिलसिला अब बंद हो गया है
गहनों की चमक से अब उसका जी घबराता है
आईने में कई शिकन पड़ गई है
घूंघट की ओट में जिन्हें ढका जाता है


~सौंन्दर्या 




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