शनिवार, 25 दिसंबर 2021

लेख - नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाएं

नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषाएं।

शिक्षा किसी समाज और राष्ट्र की जागृति का मूल आधार होती है। अत: शिक्षा का उद्देश्य साक्षरता के साथ-साथ जीवनोपयोगिता भी होना चाहिए। शिक्षा-नीति से अभिप्राय शिक्षा में  सुधारों से होता है। इसका अधिक सम्बन्ध भावी पीढ़ी से होता है। शिक्षा-नीति के द्वारा हम अपने समय के समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूर्ण रूप से सार्थक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। नई शिक्षा-नीति का एक विशेष अर्थ है, जो हमारी सोच-समझ में हर प्रकार से एक नयापन को ही लाने से तात्पर्य प्रकट करती है।

भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि किसी भी राष्ट्र के स्वाभिमान तथा उसकी प्राचीन संस्कृति की संवाहिका भी होती है। गुलाम देशों की अपनी कोई भाषा नहीं होती। वे अपने शासकों की बोली बोलने को मजबूर होते हैं। भाषा के बिना देश गूंगा होता है। कला, संस्कृति, विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्सा, विज्ञान, सबका अधिगम भाषा ही है।
विश्व के इतिहास पर दृष्टि डालें तो गुलामी से आजादी के बाद दुनिया के सभी देशों ने अपनी भाषा में अपनी प्रगति का मार्ग चुना। इजराइल ने हिब्रू भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा बनाया और आज वह भाषा पूरी दुनिया में तकनीक की प्रमुख भाषाओं में शामिल है। आज हिब्रू का अनुवाद अन्य भाषाओं में लोग करने को मजबूर होते हैं। रूस ने रशियन, चीन ने चीनी और जापान ने जापानी भाषा को अपनी शिक्षा-दीक्षा तथा राजकाज की भाषा बनाया। हमारे छोटे से पड़ोसी देश नेपाल ने भी अपनी भाषा नेपाली ही बनाई।
परंतु भारत में ऐसा नहीं हुआ। दासता से मुक्ति के बाद एक प्राचीन राष्ट्र होते हुए भी अंग्रेजी यहां राजकाज एवं संपर्क की भाषा बनी हुई है। अन्य भारतीय भाषाएं अंग्रेजी की गुलामी करती हुई दिखाई देती हैं। शिक्षा की दशा एवं दिशा सुधारने के लिए अब तक गठित लगभग सभी आयोगों ने अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करने की कोशिश की परंतु अंग्रेजों के जाने के बाद भी सिक्का अंग्रेजी का ही कायम है। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् शिक्षा-सम्बन्धित यहाँ विविध प्रकार के आयोगों और समितियों का गठन हुआ। इस सन्दर्भ में महात्मा गाँधी की ‘बुनियादी शिक्षा’ की दृष्टि बहुत अधिक कारगर और सफल साबित हुई। इसी के अन्तर्गत ‘बेसिक विद्यालयों’ की शुरूआत की गई थी ।

*सन् 1953-54 ई. में भारत सरकार ने शिक्षा-पद्धति पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके विशेष प्रकार के आयोग का गठन किया था । इसके अनुसार प्राथमिक (बेसिक) शिक्षा चौथी से बढ़ाकर पाँचवी तक कर दी गयी ।
* इसी तरह सन् 1964, सन् 1966, सन् 1968 सन् 1975 में शिक्षा सम्बन्धी आयोग गठित होते रहे । सन् 1986 में 10+2+3 की शिक्षा-पद्धति शुरू की गई थी ।
नयी शिक्षा-नीति के द्वारा हमारी बुनियादी शिक्षा में परिवर्तन तो हुआ परंतु भारतीय भाषाओं की हिफाजत न हो पाई। पिछले पांच दशकों में देश ने 220 भाषाओं को खो दिया है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्त घोषित कर दिया है। आठवीं अनुसूची की 22 भाषाएं भी कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर रही हैं। 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बड़ी शिद्दत के साथ इस कमी को महसूस किया गया और पहली बार भाषा की ताकत की पहचान करते हुए हिंदुस्तान को अपनी वाणी दी गई है। इस शिक्षा नीति में पहली बार शिक्षा में हिंदी भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षण पर पूरा जोर दिया गया। इतना ही नहीं, भाषा को शिक्षा में मूल्य बोध, दृष्टिकोण और सृजनात्मक कल्पना के साधन को भी माना गया है। नई शिक्षा नीति में किशोरावस्था तक मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि मौलिक विचार अपनी मातृभाषा में ही आते हैं, इसलिए उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए भी मातृभाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। विदेशी भाषा सीखने के चक्कर में मौलिक विचार समाप्त हो जाता है। हमारे देश में प्लेटो, अरस्तू, मैक्समूलर आदि तो पढ़ाए जा रहे थे, किंतु भारत के कपिल, गौतम, भास्कराचार्य, चाणक्य, कात्यायन, पतंजलि, सुब्रमण्यम भारती और अगस्त्य जैसे दार्शनिकों, शिक्षाविदों को महत्त्व नहीं दिया गया।

इसी कारण वर्श इस शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के शिक्षण और अधिगम को स्कूल और उच्चतर शिक्षा के प्रत्येक स्तर के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है। नई शिक्षा नीति में सभी भारतीय भाषाओं के संवर्धन को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया गया है कि भाषाओं के शब्द भंडार लगातार अपडेट होते रहें। कविता, उपन्यास, पत्र-पत्रिकाओं का प्रवाह बना रहे भारतीय भाषाओं में चर्चा हो, तभी भाषाओं का संरक्षण हो सकता है। विदेशी भाषा अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन कोरियाई में यह क्रम चल रहा है, किंतु भारतीय भाषाओं को जीवित बनाए रखने के मामले में अभी तक भारत की गति काफी धीमी रही है।

इसके लिए भाषा शिक्षकों की कमी दूर करने के साथ ही भाषाओं को अधिक व्यापक रूप में बातचीत और शिक्षण के लिए प्रयोग में लाए जाने की आवश्यकता है। स्कूली बच्चों के भीतर भाषा, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाए गए हैं। इसके लिए मातृभाषा, स्थानीय भाषा में शिक्षण, अधिक अनुभव आधारित भाषा शिक्षण, कलाकारों व लेखकों को स्थानीय विशेषज्ञता के विभिन्न विषयों में विशिष्ट प्रशिक्षक के रूप में स्कूलों से जोड़ने पर बल दिया गया है। उच्चतर शिक्षा संस्थानों में भाषाविदों को अतिथि शिक्षक के रूप में नियुक्त करने, भाषाओं की मजबूती, उपयोग एवं जीवंतता को प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया गया है। भारतीय भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता की अधिगम सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनुवाद को बढ़ावा देने पर भी बल दिया गया है। इसके लिए एक "इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन" की स्थापना का भी प्रस्ताव है।

देश की प्राचीन 'संस्कृति' भाषा की प्रगति के लिए इसे मुख्यधारा में लाने हेतु इस भाषा के महत्वपूर्ण योगदान तथा विभिन्न विधाओं एवं विषयों के साहित्यिक, सांस्कृतिक महत्व और वैज्ञानिक प्रगति के चलते इस भाषा को उच्च शिक्षा संस्थानों में ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में प्रयोग करने का सुझाव दिया गया है। संस्कृत विश्व की सबसे समृद्ध भाषा है। उसमें शब्द संख्या 10 करोड़ है। अंग्रेजी के मूल शब्द केवल 35 हजार हैं। हिंदी के मूल शब्द नौ लाख हैं। विश्व में हिंदी करीब 85 करोड़ लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, जबकि अंग्रेजी मात्र 32करोड़ लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। संस्कृत के इस महत्व को ध्यान में रखते हुए इस भाषा को पाठशाला एवंविश्वविद्यालयों तक सीमित न रख कर इसे मुख्यधारा में लाने का संकल्प किया गया है।
नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कला, संस्कृति और भाषा के माध्यम से मनुष्य की सृजनात्मक क्षमता को जागृत करने पर बल दिया गया है। पहले ज्ञान और कौशल को अलग करके देखा जाता था परंतु उसका यह शिक्षा नीति विरोध करती है। शिक्षा नीति के मसौदे के 22वें स्तंभ में भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति के संवर्धन के संबंध में पूरा खाका पेश किया गया है। इसके अध्ययन से यह साफ हो जाता है कि भारतीयता को आगे रखकर यह शिक्षा नीति बनी है, जिसमें भाषा की शिक्षा पर बल दिया गया है।

धन्यवाद।            
पूजा चौधरी।                                                                  तृतीय वर्ष (3rd year)                                                    हिंदी ऑनर्स (Hindi Honours)        
जीसस एंड मेरी कॉलेज

शनिवार, 11 दिसंबर 2021

कविता - सत्य का उजाला

सत्य का उजाला

राम लला पधारे अयोध्या
सबने लगाया टीका नज़र का काला
चारों ओर था उत्सव का माहौल
कैसा छाया यह सत्य का उजाला

सीता माता और लक्ष्मण भ्राता के संग आए
दूर हुआ अंधकार का जाला
सब थे खुशियां मना रहे
कैसा छाया यह सत्य का उजाला

रावण को मृत्यु तट पर पहुंचा कर
आए मर्यादा पुरुषोत्तम राम निज लाला
राहों में थे हर्ष के दिए सजे
कैसा छाया यह सत्य का उजाला

कहा गया इस शुभ दिन को दीपावली
जहां मुंह में मीठा और घरों में सजी थी फूलों की माला
जलते दियों में थी सच्चाई की जय जयकार 
कैसा छाया यह सत्य का उजाला।


~ अदिति
जीसस एंड मेरी कॉलेज



गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

लेख - मैं एक नारीवादी क्यों हूं?

नाम : अदिति

कोर्स : बी ए हिंदी ऑनर्सव

वर्ष : द्वितीय


मैं एक नारीवादी क्यों हूं?



आपने अक्सर यह सुना होगा, देखा होगा, या स्वयं कहा भी होगा कि ' स्त्री और पुरूष में कोई अंतर नहीं होता ' अरे! मगर आपने है तो कहा था कि घर के मर्द ही नौकरी करते हैं औरत नहीं, लड़कियां पढ़ लिख कर क्या करेंगी, बेटी की शादी करना मां बाप का फैसला होगा मगर बेटा अपनी मर्ज़ी से विवाह करने का अधिकार रखता है और हां यह भी कि इज्ज़त औरत का गहना होता है उसे बचा कर रखना चाहिए मगर पुरुष कहीं भी कैसे भी अपनी मर्ज़ी से जीवन व्यतीत कर सकता है। फेमिनिज्म, हिंदी में कहें तो नारीवाद, ऐसे ही विषयों पर विचार विमर्श कर असंख्य प्रयास करता है जिससे आपके ही दिए गए इन कथनों को गलत साबित किया जाए और यह स्पष्ट किया जाए कि हां स्त्री और पुरूष में वाकई कोई अंतर नहीं है।


मैं एक फेमिनिस्ट हूं, एक स्त्री अधिकारवादी। सुनने में कितना अटपटा लगता है ना कि किसीको अपने ही सामान्य अधिकारों के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है, अचंभित ना हों यहां ऐसा अक्सर होता है। खुद इस समाज का सामना कर जो स्त्री आज उस मुकाम पर है वह जानती है कि एक तुच्च-सी ख्वाहिश पूर्ण करने के लिए भी उसने कभी कितना संघर्ष किया होगा और आज वह भी यही सपना औरों के लिए देखती है कि उस जैसी तमाम स्त्रियों को वह अधिकार मिले, वह मुकाम मिले, वह अवसर मिले जिस कारण समाज में नारी का उद्धार हो।


वह कहते हैं ना कि दुख बांटने से कम होता है मगर जब हम और आप जैसी महिलाएं अपना दुख बाटेंगी तो वह आक्रोश का स्थान लेगा और फिर यही आक्रोश इस समाज में एक बदलाव लाने का कारण बनेगा।



आज पेड़ों की खुशी

आज पेड़ों की खुशी निराली है हर तरफ दिख रही हरियाली है पक्षियों में छाई खुशहाली है क्योंकि बारिश लाई खुशियों की प्याली है  Priya kaushik Hind...