गुरुवार, 12 नवंबर 2020

कविता - दास्तां - ए - इंसान

Name:- Aadrika Siddhi 

Course :- BA Programme (Psychology and Philosophy) 

Year:- 2020-2023

College:- Jesus and Mary College

दास्तां-ए-इंसान


कभी कभी मन में एक ख्याल सा आता है,
समझ नहीं आता कि इस सवाल का जवाब खोजना चाहिए, 
या बस बैठे गुमसुम सब कुछ होते तंकना चाहिए।
इस झूठ-फ़रेब की दुनिया में क्या सच, क्या झूठ किसे क्या पता हे?
सबको इस भीढ़ में अपनी एक पहचान बनानी है, अपने ख्वाब सजाने हैं।
पर अंदर उस एक वजुद का क्या 
जो शायद कहीं पड़ा हुआ है?
हर दिन जिसका दम घुट रहा है।
ये दुनिया, जहाँ चाँदी सोना ही सब कुछ है,
किसने कितना कमाया ही तुम्हारी शक्सियत है,
यहां इंसानियत का नाम-ओ-निशान नहीं है।
डर है हर उस शक्श की आँखों में, 
जो अपने अंदर के इंसान को दबा रहा है, 
और इस शोर में एक जानवर जैसे जन्म ले रहा है।
इस जानवर को तुम सुला कैसे लेते हो ?
जो तुम हो नहीं उससे तुम जगा कैसे देते हो?
वो हर एक इंसान जो ये न कर सके 
उसे ये दुनिया कुचल देती है,
इसलिए हर एक इंसान अपने ज़मीर को खुद ही दबा लेता है।
कि इस दुनिया में उसे कुछ कम ही सही 
पर राहत की साँसें मिलें।
अंदर अपना सिरे पकड़ सोचे,
और बाहर उसी सिर को ऊंचा कर ज़माने में बेख़ौफ़ चले।

- आद्रिका सिद्धि
    




    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आज पेड़ों की खुशी

आज पेड़ों की खुशी निराली है हर तरफ दिख रही हरियाली है पक्षियों में छाई खुशहाली है क्योंकि बारिश लाई खुशियों की प्याली है  Priya kaushik Hind...