रविवार, 8 नवंबर 2020

कविता - बात अस्मिता की

Name - Bhavana
Course : Ba Hindi hons
College : Bharati college


बात अस्मिता की                                     
कहते हैं लोग 
वे दो एक हैं।
पर मैं कहती हूँ 
दोनों अलग हैं।
एक स्त्री और एक पुरुष
दोनों के काम अलग ,
नाम अलग,
विचारधाराएं अलग,
स्वभाव अलग,
समाज में स्थान अलग,
फिर कैसे वे एक हैं?
आखिर क्यों?
स्त्री की पहचान हो उसके अधीन,
जिसका अस्तित्व ही हो  उसके अधीन।
आखिर क्यों ?
समयानुसार बदल जाते हैं शोषक
शोषित वही 
जिसके मार्ग में हैं 
सदियों से अवरोधक।
आखिर मैंने सोचा
किस नींव पर खड़ा है यह समाज?
तब मैंने पाया
झूठ और षडयंत्र की नींव 
पर खड़ा है यह समाज।
जो सदियों पूर्व रचा गया 
स्त्रियों के लिए,
जहाँ आधी आबादी को दी गई
स्वतंत्रता बेशुमार,
जहाँ आधी आबादी  की
अस्मिता को ही दिया गया नकार 
अब तक उसे थी 
पुरुषों से ही स्वतंत्रता की आस
परंतु हुआ नहीं कुछ बदलाव खास 
सदियाँ बीत गईं
और सदियाँ बीत जाएँगी
यदि यही चलता रहा लगातार
इसीलिए,अब वह 
स्वयं कर रही है प्रयास 
कह कर 
कभी तो होंगी  कामयाब !

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