प्रदुन कुमार ठाकुर
B.A(hons) hindi
3rd year
आर्यभट्ट कॉलेज
हिंदी है परिवार
कोई कहावे सिद्ध पुरूष ,कोई सियासतदार।
अंग्रेजी मेहमान है, हिंदी है परिवार।
कल सत्ता किसी और कि, कल शासक कोई और
हिंदी ऐसी बाँसुरी, जिन सुन नाचे मोर।
अंग्रेजी सर आँख पर , हिंदी के बहते नोर।
हिंदी सुनते कुछ यूँ देखे, जैसे की सामने चोर।।
अपनी बोली बोले में , लागे काहू को लाज।
कौनो अपनी बोली के, माने सर का ताज।।
भाषा ऐसी धार है, अमृत रूपी भेट।
संस्कृति और सभ्यता का, लहलहाता खेत।।
अंग्रेजी जो कुछ कह दे, कहलावे पढ़ा लिखा।
पर आसमान में उड़ने का, सपना हिंदी में दिखा।।
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