रविवार, 14 नवंबर 2021

कविता - दिल से दिल मिलाना

दिल से दिल मिलाना

जश्न भी माना लिया
गले पर फूलों से सजा हार भी डाल दिया
पर क्या इन सबने तुम्हें उस रोती मां का दर्द महसूस करा दिया?

तिरंगे से सजा कफन भी उठा लिया
शान और शौकत से सलाम भी ठोक दिया
पर क्या इन सबने तुम्हें उस सैनिक का दर्द महसूस करा दिया?

यह तो सदियों पुरानी चलती आई कहानियों का ज्ञान है
जो बचपन से ही मन में लड़ाई का एक जुनून सा पैदा कर देती है
पर अनुमान है वहां की सच्ची तस्वीर क्या होती है?

बिना कुछ महसूस किए हम भी उसी गीत में सुर से सुर मिलाते रहे, कि देश के लिए शहीद होना गर्व की बात है।
कभी खुद किसी को शहीद होते हुए देखते
तब भी क्या इस गीत में सुर से सुर मिला पाते?

कभी उनके हालातों में जीवन जीकर देखते
कभी अपनों से सालों जुड़ा होकर देखते
तब भी क्या इस गीत में सुर से सुर मिला पाते?

जिस हार और दहशत को खुद महसूस नहीं किया तो फिर किस मुंह से कह दिया - अपने देश के लिए मर मिट जाना गर्व की बात है।

दोस्तों यह बात गर्व की कम
अपने गिरिबान में झांकने की ज्यादा है
यह बात उन शहीदों और उनके परिवारों की ओर
संवेदना और सहनशीलता जताने की ज़्यादा है।
अपने आने वाली पीढ़ी को सच से परिचित कराने की ज़्यादा है।

अब सुर से सुर मिलाने की नहीं
दिल से दिल मिलाने की कामना है।



दीपशिखा उप्रेती
द्वितीय वर्ष, जीसस एंड मेरी कॉलेज

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