शनिवार, 20 नवंबर 2021

कहानी - रूढ़िबद्धता और सुनीता

कहानी का शीर्षक : रूढ़िबद्धता और सुनीता



उस रोज़ ऑफिस में चहल पहल थी।


कुछ लोगों के काम से प्रसन्न था मोहन तिवारी। मोहन तिवारी ऑफिस का बड़ा अधिकारी था।


कई आदमियों के साथ - साथ एक औरत को भी प्रोमोशन मिलने की खबर तेज़ी से फैल रही थी।


सुनीता, दिमाग से अत्यंत बुद्धिमान महिला। सुनीता को बचपन से काम करने की इच्छा रही थी, वह सोचती थी कि मर्द ही क्यों, औरत नहीं काम कर सकती ? एक सशक्त महिला, जो प्रतिदिन ऐसे वाक्यों से जूझती थी जहां उसे अपनी बुद्धिमानी का परिचय देना पड़ता था क्योंकि औरत तो दिमाग से क्षीण होती है ना।


प्रोमोशन के सिलसिले में सुनीता को मोहन तिवारी अपने केबिन में बुलाता है। वह कुछ खुश नहीं दिखाई दे रहा, शायद उसके मन का द्वंद्व उसके चहरे पर उभरे बिना नहीं रह पा रहा है। वह सुनीता से कहना बहुत कुछ चाहता है मगर शायद कह नहीं पाएगा।


सुनीता : "मे आई कम इन सर?"

मोहन तिवारी : "हां हां सुनीता आओ आओ, बैठो। और बताओ ठीक हो?"

सुनीता : "जी सर, आप कैसे हैं?"

मोहन तिवारी : "बस ठीक ही हैं हम भी, हा हा हा, और बताओ घर में सब कैसे हैं?"


यह सवाल सुनने के पश्चात सुनीता को कुछ खटका।


सुनीता : "बिल्कुल ठीक सर। अच्छा सर आपने केबिन में बुलाया मुझे शायद आप को प्रमोश …"


मोहन तिवारी ने उसकी बात को बीच में ही काट कर कोई और बात रखनी चाही मगर सुनीता सब समझ चुकी थी कि वह उसके प्रोमोशन की बात क्यों नहीं करना चाहते हैं।


सुनीता : "सर, मुझे पता है कि आप मेरे काम से बेहद खुश हैं। आप जानते हैं कि इस ऑफिस में कौन मेहनत से आगे बढ़ना जानता है और कौन केवल अपने लिंग का लाभ उठाकर। मैं जानती हूं आपको कई बातें सुनने को मिली होंगी मगर आप ही देखिए क्या मुझे केवल इस बात पर प्रोमोशन कभी नहीं मिल पाएगा कि मैं एक औरत हूं?"


यह सब बातें सुनकर मोहन तिवारी थोड़ा सपकपा सा रह गया। हां उसके कानों तक बात पहुंची थी कि सुनीता एक औरत है, उसको प्रोमोशन देना यानी प्रतिभाएं नष्ट करना। उसको सुनीता से काफी उम्मीदें थीं, वह जानता है कि सुनीता बिना कोई अन्य रास्ता अपनाए यहां तक पहुंची है मगर लोगों की बातों को भी वह नहीं टाल सकता है। बेशक वह खुद लिंग रूढ़िबद्धता में विश्वास नहीं करता मगर अगर उसे समाज में रहना है तो उसे इसी का पालन करना होगा।


सुनीता के कहे शब्द सुनने के बाद मोहन तिवारी एक गहरी सांस लेकर कहता है - "देखो सुनीता, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम इस प्रोमोशन के काबिल नहीं हो, लेकिन अगर मैंने तुमको यह प्रोमोशन दे दी तो लोगों के मन में तुम्हारे ही लिए गलत ख्याल पैदा हो जाएंगे और यहीं नहीं मिलने पर तुम सुरक्षित रहोगी। देखो, सब यही मानते हैं कि आदमी को ही तरक्की मिले क्योंकि वह मेहनत करता है, बुद्धिमान है, अगर एक औरत को तरक्की मिलती है तो यह समाज बिल्कुल इसके विपरीत ही सोचेगा। औरत कमज़ोर होती है, यह नौकरी चाकरी करना उसके बस की बात नहीं होती, ऐसा मैं नहीं समाज सोचता है।


सुनीता यह सब सुनकर थोड़ी अचंभित हुई और उसने तुरंत पूछा : "सर समाज अगर यह मानता है तो आप क्यों इसको बढ़ावा दे रहे हैं, आप तो समझदार व्यक्ति हैं।" जिसके उत्तर में मोहन तिवारी केवल एक वाक्य बोलता है जिससे सुनीता के दिमाग में सब कुछ स्पष्ट हो जाता है।


मोहन तिवारी सुनीता के प्रश्न करने पर कहता है : "समझदार मैं हूं सुनीता मगर हूं तो इसी समाज का हिस्सा ही।


सुनीता उतरा हुआ चेहरा लेकर बिना कुछ कहे मोहन तिवारी के केबिन से बाहर निकलती है। सबकी नजरें उसकी ओर हैं, होनी भी चाहिए, इन्हीं लोगों ने तो प्रोमोशन रुकवाया है सुनीता का मगर हमेशा की तरह सुनीता अब चुप नहीं रहेगी।


वह अपना इस्तीफ़ा दे चुकी है। उसके मन की आवाज़ ने जैसे उसे झंझोड़ कर रख दिया हो कि देख सुनीता समाज में आज भी यह रूढ़ि वादी धारणाएं बनी हुई हैं, इसी को तुझे मिटाना है ताकि कल को कोई औरत यह ना सुने : "माफ़ कीजियेगा, औरतें जितनी भी समझदार हो जाएं मगर समाज मर्दों को ही बुद्धिमान मानेगा और यह बात आप भी मान लीजिए।


- अदिति, जीसस एंड मेरी कॉलेज






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