Course and year : Hindi hons 1st year
College : Jesus and Mary college
कविता - पर्दा
यहां पर्दा है हर रिश्ते में,
ऐसे रिश्तों से डरती हूं।
लुक्का - छिप्पी का खेल हो जैसे,
ऐसे रिश्तों में पलती हूं।
वो हॅंस के के देते हैं कि,
यह कुछ नहीं बस ' यूं हीं ' हैं।
इन ' यूं हीं ' के रिश्तों में ही तो,
तिल - तिल कर मैं मरती हूं।
चुप रहना भी मजबूरी है,
कुछ कहने बस की बात नहीं।
इन रिश्तों के खातिर है तो मैं,
फिर खामोशी सहती हूं।
यहां पर्दा है हर रिश्ते में,
ऐसे रिश्तों से डरती हूं।