कोर्स : बी ए हिंदी ऑनर्स
वर्ष : तृतीय
कॉलेज : जीसस एंड मेरी कॉलेज
कविता : आज़ादी का उत्सव
बात उस दौर की है जब भारत एक गुलाम था,
हम पर हुकूमत था करता, वह ब्रिटेनी ताज था।
जुल्म का स्तर कुछ इस प्रकार था की भरी दोपहरी में अंधकार था,
हर पल मन एक ही ख्याल सताता, कि अब अगला कौन शिकार था।
किंतु फिर भी मन में विश्वास था, क्योंकि कलम का ताकत पास था,
जो मौखिक शब्द ना कर पाते, ऐसे में यह एक शांत हथियार था।
आक्रोश की ज्वाला धधक रही थी, आंदोलन बनके वह दमक रही थी,
स्वतंत्रता की बात क्या उठी, चिंगारी शोले बन चमक रही थी।
लिख लिख कर हमने भी गाथा, दिलों में शोलों को भड़काया था,
सत्य अहिंसा को हथियार बनाकर, अंग्रेजों को बाहर का मार्ग दिखाया था,
बहुत मिन्नतों बाद दिखा हमें, आज़ादी का यह उत्सव था।
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