रविवार, 26 सितंबर 2021

कविता : दो टूक जवाब

कविता : दो टूक जवा

मैं पूछ रही थी श्रीमान
क्या है मजहब क्या है इंसान?
क्या दोनों से है अस्तित्व की पहचान?

कौन मिटा रहा है किसका निशान?
किसने रोकी है किसकी उड़ान?
मजहब है या है वह इंसान?

एकदम से चीख पड़ा मजहब विद्वान
बोला, क्यों घसीट रही हो मुझे बेईमान?
खुद ही लगाई जा रही हो सब अनुमान
हमने नहीं बांटा इंसान
इंसान ने हमें बांटा शैतान
हम तो वहां भी हैं जहां हैं सब सुनसान

घरों में तो ये बैठे हैं आलीशान
नीच कर्मों के हैं यह धनवान
नैतिकता की पोटली बनाए रखी है मूल्यवान

सच इन्हें लगता है अपमान 
सब ने ओढ़ी है झूठी मुस्कान
करते हैं खुद पर शत-प्रतिशत अभिमान
स्वयं को समझते हैं बहुत बड़ा शक्तिमान
यही तो तोड़ना चाहते हैं हिंदुस्तान
सत्य तो यह है आप भी नहीं हैं इन बातों से अनजान।


निघत शिरीन
जीसस एंड मेरी कॉलेज एलुमनी 2020
बीए हिंदी ऑनर्स

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