रविवार, 8 अगस्त 2021

कविता - परंपराओं के रक्षक यह पुरुष

परंपराओं के रक्षक यह पुरुष

वो कहते हैं, युग कोई भी हो, नारी को सीता - सा होना चाहिए।
पति के चरणों में चारों धाम हों, पति परमेश्वर होना चाहिए।।
नारी के लिए पति का सम्मान सर्वोपरि हो, उसका स्वाभिमान पति के पैरों तले होना चाहिए।
कहे रागिनी इन परंपराओं के रक्षकों से,
न यह सतयुग है, न पुरुष है राम,
न पुरुष का तेज राम - सा है, अब न उसका मन है अचलायमान।
स्वाभिमान के लिए तो सीता ने भी पारिवारिक सुखों को त्याग दिया था।
वो समाज ही क्या जो स्त्री का सम्मान ना करे, माता सीता ने भी यह जान लिया था।।
स्त्री का सीता होना सतयुग तक ही सीमित कर दो।
कलयुग में तो पुरुषों के चंचल मन के समक्ष, स्त्री के सम्मान की भीत खड़ी कर दो।।
हाँ यह समाज तक भी कोसता था, अब भी कोसेगा।
परंतु स्त्री के साथ हुए अन्याय में आकर उसके आंसू नहीं पोंछेगा।।
सतयुग में सीता का सीता होना अनिवार्य था।
किंतु परिवर्तन संसार का नियम है यह तो कृष्ण ने भी गीता में सुनाया था।
जीवन में परंपराओं का होना आवश्यक है।
किंतु उनमें समय के साथ परिवर्तन आना निश्चित है।।
अतः जब तक पुरुष राम था, स्त्री सीता हो सकती थी।
पुरुष के उत्तरदायित्वों को समझते हुए, अपने सुखों को खो सकती थी।।
परंतु न यह सतयुग है, न पति राम।
इसलिए स्त्री को अपने सम्मान के लिए छेड़ना पड़ेगा संग्राम।।

अनुष्का कौशिक
B.el.ed प्रथम वर्ष
जीसस एंड मेरी कॉलेज

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