शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

कविता: प्रथम किरण का उदय

वह साल बड़ा ही निष्ठुर था
बस प्राण हरण को आतुर था
जीवन पर जीवन लेता था
कुछ अच्छा कभी ना देता था

हो लाख कमी उस एक बरस
न आया उसको तनिक तरस
पर हर सिक्के के दो पहलू
कुछ दोष मढा,अब मृदु कह लूं

मुझे मेरा मार्ग दिखा ये गया
कुछ अति विशिष्ट समझा ये गया
जीवन के अंधेरे से अवगत करा ये गया
दुनिया में रहना सिखा ये गया

भ्रमित थी कि है मुझे भी कोई कला मिली?
या रह जाएगी जिंदगी सहज और मिली जुली?
शौर्य कमाना है तो आवश्यक है एक गुण
उसका पता लगे तो बनू उसमे निपुण।

पूरे बंद में अर्जित किए उत्तम विचार
कभी कुछ गीत सुने ,कभी सुना वेदों का सार
कविता के रूप में निकाल दी अपनी भड़ास
तब प्रतीत हुआ बहुत महत्वपूर्ण होता है प्रथम प्रयास

एक कवि का तो गुण ही है गहन चिंतन
बस फिर क्या था ! आरंभ हुआ जीवन मंथन
मेरा व्यवहार कुछ बदल गया
हर विषय पर गहरी सोच का उदय हुआ।

जहां रुचि नहीं थी वहां बढ़ने लगी
मैं हर ज्ञान के स्रोत को पकड़ने लगी
निज - मुख पर तेज सा आ गया।
यह बरस जीवन का लक्ष्य दिखा गया।

थोड़ी समझदार मै भी बन गई
थोड़ी  भौंहे मेरी भी तन गई
वो थोड़ा समय स्वयं पे काम किया
तब - तब चिंतन किया, जब - जब विश्राम किया।

अनुष्का कौशिक
B.El.Ed 
प्रथम वर्ष
जीसस एंड मेरी कॉलेज




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