पार्थ की तरह अधर्मियों का नाश करती,
तमस में प्रकाश भरती,
पक्षियों को पर फैलाने
धरती में आकाश भरती।
व्यास सा महान एक सर्ग करती,
समाप्त जाति - वर्ग करती,
प्रभु का बिम्ब पाने
कलयुग को भी स्वर्ग करती।
कुपथ का मैं त्याग करती,
ईश्वर से अनुराग करती,
जीवन का आनंद उठाने
दिवस सारे फाग करती।
कर्ण - सा एक निश्चय करती,
सामर्थ्य ही परिचय देती,
पीड़ित का आदर्श बनने
प्राण का बलिदान करती।
लक्ष्मी बाई सी वीर बनती,
एकलव्य का तीर बनती,
भाग्य अपना जीतने को
निज हाथ की मैं लकीर बनती।
मृत्यु - निद्रा में लीन होती,
धीरे - धीरे प्राण खोती,
ईश्वर का प्रमाण पाने
पंचतत्व में विलीन होती।
~ अनुष्का कौशिक
B.el.ed प्रथम वर्ष
जीसस एंड मेरी कॉलेज
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