Name : Akanksha Dagar
institution : Ex- DIET Delhi
कविता का नाम- बदलता युवा...
ना जाने क्या हो गया है?
रखते हैं आस बड़े बुजुर्ग जिनसे आज वही युवा बदल गया है,
जो देता था वक़्त कभी दादा-दादी,नाना-नानी को..
देखो आज वो किसी और दुनिया में खो गया है,
ना पढ़ाई की चिंता, ना समझ ही दुनियादारी की..
ना सम्मान बड़ों का..ना ख़बर बढ़ती बेरोज़गारी की,
बेधड़क-बेखौफ बाइक,स्कूटर,कार दौड़ाते हैं..
दोस्तों को रिझाने के लिए Speed की Vdo भी बनाते हैं,
दुःखी मत हो!आगे लड़कियों की भी बारी है..
सड़कों पर Earphones लगाकर चलना इनका आज भी जारी है,
Late हो रहे हैं,कहकर घर से स्कूल, कॉलेज के लिए निकलते हैं..
थोड़ी दूरी पर वही ठेले पर गपा-गप Momos खाते मिलते हैं,
मम्मी को बड़ी चिंता,बिटिया को लग गई जाने कौन-सी बीमारी..
हर सप्ताह-महीने घट जाता इसका वज़न बारी-बारी,
पापा बड़े खुश बेटा मेरा कितना लायक, स्कूल से सीधे ट्यूशन जाता है..
तेरा लाड़ला एक लड़की को तेरी बहू बता रहा..यह पड़ोसी आकर बताता है,
मज़बूरी कहो या परवाह बात अपनी दादी की हो…
तो बस में दूसरों से Seat दिलाते हैं,
रास्ता 5 मिनट का ही क्यों ना बचा हो...
बुज़ुर्ग खड़ा कांपेगा..फिर भी Seat से नहीं हिलते हैं,
दादी की कहानियां तैयार हैं, मगर सुनने वाले कान बन्द हो गए..
New Generation, New Time कहकर ना जाने वो युवा कहां गए,
क्या करूं ये जनता थक जाती है, लिखना और भी चाहती हूं..
माफ़ करना थोड़ा ज्यादा बोल दिया, आखिर मैं भी इसी में आती हूं।
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