शनिवार, 7 नवंबर 2020

विषय : लक्ष्य निर्धारण

नाम --- अविरल अभिलाष
कक्षा –हिन्दी प्रतिष्ठा (तृतीय वर्ष) पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य)

विषय : लक्ष्य निर्धारण

वर्तमान के सजग एवं सार्थक प्रयासों के प्रतिफल पर भविष्य का सुंदर महल बनता है,जिसमें भूत की संचित धरोहर का अपना योगदान होता है क्योंकि भूत पर हमारा कोई नियंत्रण नही रह जाता। अतः वर्तमान को संवारने का प्रयास ही हमारे अधिकार में होता है जिससे सुन्दर व सफल भविष्य को प्राप्त किया जा सकता है। पर यह भी सत्य है कि भविष्य यद्यपि भविष्य होता है जो अनिश्चितता की गोद में फलता-फूलता है फिर भी यह मानना होगा कि सजग प्रयासों व कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। इसके बल पर अनेक कर्मवीरों ने असंभव को संभव बना दिया है जिसके विषय में अभिमान व्यक्त करते हुए कब हृदय गया उठता है कि-


"पर्वतो को काट कर सड़के बना देते है वो

सैकड़ो मरभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वो"


इस प्रकार सुनहरे भविष्य के लिए अपनी तैयारी की रुपरेखा में निम्नबिन्दु हमारी मदद करते हैं_

हमारा इष्ट होता है कि भविष्य में हम सफल व्यक्ति हो,समाज व देश के लिए उपयोगी हो,तथा मानव जीवन के सार्थक परिणित को भी प्राप्त करने में सफल हो । सफलता के लिए भारतीय मनीषा का यह उदघोष हमारे पथ पर स्पष्ट प्रकाश फैला देता है-


""उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रं   क्रियाविधिज्ञं  व्यसनेश्वसक्तम्  |

शूरंकृतज्ञं दृढ सौहृदं च स्व: लक्ष्मी  स्वयं याति निवासहेतोः गत:।।""


उक्त पंक्तियों में भरी ऊर्जा व सफलता के सजग अनुक्रम इसके अर्थ को सोचकर मन को प्रफुल्लित कर देते हैं।

सफलता के लिए उत्साह से संपन्न होना पहली शर्त है। इसके अगले क्रम में अदीर्घ सूत्रम् अर्थात आलसी ना होना दूसरी आवश्यकता है इसके आगे आगे क्रियाविधिज्ञं अर्थात क्रिया विधि को जानना अगली आवश्यकता है। इन सब के बावजूद यदि व्यसन में आसक्त रहने की आदत है तो सफलता असंभव हो जाती है, इसलिए पंक्ति का उद्घोष चौथी महत्वपूर्ण शर्त में व्यसन से बचने की सलाह देता है।आगे शूरं  कृतज्ञं अर्थात नायक की भांति किसी भी कार्य में प्रथम आने की लालसा एवं कार्य सामर्थ्य रखता हो तथा अंतिम योग छठी आवश्यकता के लिए रचनाकार अपने उद्देश्यों पर दृढ़ रहने की सलाह देता है।

वास्तव में, सारे गुणों से संपन्न होने के बाद भी यदि अपने लक्ष्य को लेकर दृढ़ नहीं बल्कि भ्रमित हैं तो सफलता अपने अंतिम सोपान के करीब पहुंच कर भी संदिग्ध हो जाती है इसके लिए हमें निम्न पंक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा ग्रहण करनी चाहिए--


""जब नाव जल में छोड़ दी, तूफान में ही मोड़ दी। 

दे दी चुनौती सिंधु को, तो धार क्या मझधार क्या।।


"इन पंक्तियों के हृदय में गुनगुनाने वाली ऊर्जा हमारे लक्ष्य प्राप्ति के इरादों को दृढ़ कर देती है और बड़े लक्ष्य के लिए कठिनाई से ना घबराने की गजब की ऊर्जा प्रदान करती है।

वास्तव में, एक कर्मवीर इन सभी गुणों से संपन्न होता है, तो सफलता स्वयं ही उसको वरमाला लिए स्वागत के लिए आतुर हो जाती है।

इसी निश्चय का संदेश गीता में श्री कृष्ण 

""कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"" 

के द्वारा तथा राम की शक्ति पूजा में हिंदी साहित्य के महान हस्ताक्षर कवि निराला जी 

"आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर.....

""वरो विजय""  के द्वारा भी व्यंजित करते हैं।

इसलिए हमें अपने सुंदर एवं सफल भविष्य के लिए कर्म वीरों के इन्हीं गुणों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए इस क्रम में सद्गुणों को ग्रहण करना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है दुर्गुणों से दूर रहना।

कर्म पथ पर मजबूत इरादे से बढ़ाया गया हर कदम हमारे हौसले को बढ़ाता है इस हौसले से उपजने वाली ऊर्जा कठिनाइयों से लड़ने के लिए अपारशक्ति भेंट करती है।

फिर मन में यही गूंज उठने लगती है कि---


""कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो 

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ ना हो 

कुछ तो उपयुक्त करो तन का, नर हो न निराश करो मन को।।""


इन सजग एवं सार्थक उपादान उसे हमें सफलता अवश्य मिलेगी यह निश्चित है किंतु मेरा मानना है कि इसके आगे प्रयासों की सजग संयोजना कम नहीं होती। सफल होकर हम केवल अपने लिए उपयोगी ना रह जाएं, बल्कि देश एवं समाज के लिए मेरा योगदान एक अमूल्य धरोहर हो। इसके लिए नैतिक गुणों से संपन्न होना तथा राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होना परम आवश्यक है। इस संदर्भ में महापुरुषों के प्रेरक कथन उनके अनुभव व सजग संकेत हमारा मार्गदर्शन करते हैं---


""जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं। 

वो हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।""


वास्तव में, एक सफल एवं समाजोपयोगी व्यक्ति बनने के लिए इन पंक्तियों की गूंज हमें नैतिक मूल्यों यथा सच्चाई, ईमानदारी व राष्ट्रभक्ति की अपार संवेदना भेंट करती है। मेरा स्पष्ट मानना है कि इन मूल्यों से हीन व्यक्ति सफलता के चाहे जितने ऊंचे शिखर पर क्यों ना पहुंच जाए समाज व देश के लिए उसका योगदान मूल्यवान हो ही नहीं सकता। इस प्रकार, हमें अपने सुंदर एवं सफल भविष्य के लिए सफलता के सूत्र ढूंढने के साथ- साथ नैतिकता के महान गुणों को भी धारण करते रहना चाहिए तभी सही मायने में हम सुंदर व सुखमय भविष्य की आकांक्षा कर सकते हैं। ईमानदारी, निष्ठा व पवित्र साधनों के सहारे किया गया प्रयास तथा सृष्टा को समर्पित उसका प्रतिफल एक कर्मवीर को लक्ष्य प्राप्त करने की अकाट्य शक्ति प्रदान करता है। जिससे वह अपने मानवीय कर्तव्यों का सही मायने में पालन कर सकता है।

इस प्रकार कहना ना होगा कि इसके लिए हमें नियमित रूप से इस सुझाव पर आगे बढ़ना ही होगा कि-

 

""शक्ति के विद्युतकण जो व्यस्त विकल बिखरे हैं हो निरूपाय।

समन्वय उनका करो समस्त विजयिनी मानवता हो जाए।।“”




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