शनिवार, 1 जनवरी 2022

लेख - फिल्मों की दुनिया

फिल्मो की हिन्दी

हिन्दी फिल्में देश केफिल्मो की हिन्दी

हिन्दी फिल्में देश के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी हैं। इस प्रकार इन फिल्मों ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिन्दी को प्रोत्साहित किया है।

आज देश में मनोरंजन का सर्वाधिक प्रचलित साधन निःसंदेह भारतीय फिल्में हैं। देश के हर कोने में हिन्दी फिल्म देखी-दिखाई जाती है। अतः हम कह सकते हैं कि हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दिया है। 

 

भारत की सर्वप्रथम सवाक फिल्म 'आलमआरा' थी, जिसे सन्‌ 1931 में आर्देशिर ईरानी ने बनाया था। यह फिल्म हिन्दी में बनी थी। कहते गर्व होगा कि प्रथम भारतीय सवाक फिल्म हिन्दी में थी। अब हम यह तो आर्देशिर ईरानी से पूछने से रहे कि उन्होंने अपनी प्रथम फिल्म हिन्दी में क्यों बनाई? अगर यह पूछना संभव भी होता तो ईरानीजी निश्चित रूप से यह कहते कि 'कैसे मूर्ख हो? अरे! हिन्दी तो हिन्दुस्तान की भाषा है। यह तो जन-जन की भाषा है। मुझे अपनी फिल्म देश की 21 करोड़ आबादी तक पहुँचाना है।'

खैर, आज हिन्दी फिल्में जितनी लोकप्रिय हैं शायद ही किसी अन्य भाषा की फिल्में होंगी। विश्व में बनने वाली हर चौथी फिल्म हिन्दी होती है। भारत में निर्मित होने वाली 60 प्रतिशत फिल्में हिन्दी भाषा में बनती हैं और वे ही सबसे अधिक चलन में होती हैं, वे ही सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, वे ही सर्वाधिक बिकाऊ हैं।

ऐसा नहीं है कि क्षेत्रीय भाषा की फिल्में चलती ही नहीं हैं। लेकिन असमी फिल्म असम में, तेलुगु फिल्म आंध्र में ही लोकप्रिय होती हैं। इसके विपरीत हिन्दी फिल्म सारे भारत में चलती है। जिस उत्साह से वह उत्तरी भारत में दिखाई जाती है उसी उत्साह से दक्षिण भारत में भी दिखाई जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि हिन्दी हमारी संपर्क भाषा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दी लिखने, पढ़ने, बोलने वाले मिल जाएँगे।

इसी प्रकार हिन्दी फिल्मों के दर्शक और प्रशंसक भी आपको पूरे देश में मिल जाएँगे। अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण भारतीय फिल्मोंके अतिरिक्त दूसरा हो ही नहीं सकता। 

 

कुछ सीमा तक दक्षिण में हिन्दी का विरोध है, लेकिन हिन्दी फिल्में लोकप्रिय हैं। खासकर तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध किया जाता है, लेकिन इसी तमिलनाडु के तीन शहरों मदुरै, चेन्नाई और कोयंबटूर में हिन्दी फिल्म 'शोले' ने स्वर्ण जयंती मनाई थी! 'शोले' के अलावा 'हम आपके हैं कौन', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे', 'बॉर्डर', 'दिल तो पागल है' भी पूरे देश में सफल रहीं। 'गदर' और 'लगान' जैसी कितनी ही फिल्में आई हैं जिन्होंने पूरे देश में सफलता के झंडे गाड़ दिए।

हिन्दी फिल्मों में अहिन्दी भाषी कलाकारों के योगदान के कारण भी हिन्दी को अहिन्दी भाषी प्रांतों में हमेशा बढ़ावा मिला है। सुब्बालक्ष्मी, बालसुब्रह्मण्यम, पद्मिनी, वैजयंती माला, रेखा, श्रीदेवी, हेमामालिनी, कमल हासन, चिरंजीवी, ए.आर. रहमान, रजनीकांत आदि प्रमुख सितारे हिन्दी में भी लोकप्रिय हैं। बंगाल की कई हस्तियाँ हिन्दी सिनेमा की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रही हैं।

मसलन मन्ना डे, पंकज मलिक, हेमंत कुमार, सत्यजीत रे (शतरंज के खिलाड़ी), आर.सी. बोराल, बिमल रॉय, शर्मिला टैगोर, उत्त कुमार आदि। प्रसिद्ध अभिनेता डैनी डेंग्जोग्पा अहिन्दी राज्य सिक्किम से हैं, तो हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार सचिन देवबर्मन तथा राहुल देव बर्मन मणिपुर के राजघराने से संबंधित थे।

इसी प्रकार हिन्दी फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार जितेंद्र पंजाबी होने के बावजूद दक्षिण में लोकप्रिय हैं। हिन्दी फिल्मों की प्रसिद्ध हस्तियाँ स्व. पृथ्वीराज कपूर एवं उनका समस्त खानदान, दारासिंह, धर्मेन्द्र आदि पंजाब से हैं। इस प्रकार के और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। 

 

हिन्दी फिल्में देश के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी हैं। इस प्रकार इन फिल्मों ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिन्दी को प्रोत्साहित किया है। राजकपूर की 'आवारा' और 'श्री 420' ने रूस में लोकप्रियता के झंडे गाड़ दिए थे। अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, लता मंगेशकर एवं हिन्दी फिल्मों के अन्य कई कलाकार सारी दुनिया के बड़े-बड़े शहरों में अपने रंगमंचीय प्रदर्शन सफलतापूर्वक कर चुके हैं। आज भी ऑल इंडिया रेडियो के उर्दू कार्यक्रमों के फर्माइशकर्ता 90 प्रतिशत पाकिस्तानी श्रोता होते हैं। भारतीय फिल्में और गीत वहाँ सर्वाधिक प्रिय हैं। 

 

सिर्फ भारत के ही कलाकार विदेशों में लोकप्रिय नहीं, बल्कि कई विदेशी कलाकार हिन्दी फिल्मों की वजह से लोकप्रिय हो गए हैं। मेहँदी हसन व गुलाम अली (दोनों पाकिस्तानी गजल गायक) के हिन्दी गीत आज भारत में लोकप्रिय हैं। रूना लैला बांग्लादेश से आकर हिन्दी फिल्मों की वजह से लोकप्रिय बनीं, वहीं पाकिस्तानी अदाकारा जेबा को 'हिना' से लोकप्रियता मिली। इन सब तथ्यों से हम कह सकते हैं कि हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी को सौ प्रतिशत प्रोत्साहन दिया है।

 

नंदिनी रॉय 

हिन्दी ऑनर्स

तृतीय वर्ष 

181137

 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें